Monday 24 November 2014

ऑस्टियोपोरोसिस साइलेंट किलर 


            लेकिन आजकल छोटी उम्र के लोगों में भी यह समस्या बढ़ रही है। हड्डी की इस बीमारी का नाम है ऑस्टियोपोरोसिस। इससे बचाव के बारे में बता रहे हैं   आलमऑ स्टियो का अर्थ होता है हड्डी और पोरोसिस का मतलब कमजोर या मुलायम, यानी जिस बीमारी में हड्डियां कमजोर होने लगती हैं, उसे ऑस्टियोपोरोसिस के नाम से जानते हैं। इसे साइलेंट किलर भी कहते हैं, क्योंकि इसका तब तक पता नहीं चलता, जब तक कि हड्डियां मुलायम या कमजोर होकर टूटने न लगें। शुरुआत में हड्डियों में इतना दर्द नहीं होता, जिससे यह बीमारी पकड़ में आए। सीधे शब्दों में कहें तो ऑस्टियोपोरोसिस एक ऐसी अवस्था है, जिसमें हड्डियों का घनत्व कम हो जाता है।

         हड्डियां का कमजोर होना 
हड्डियां प्रोटीन, कोलेजन और कैल्शियम से मिल कर बनी होती हैं। ये सारे तत्व हड्डियों को मजबूती देते हैं, लेकिन इस बीमारी में इन तत्वों की मात्रा का संतुलन बिगड़ जाता है और हड्डियां कमजोर होकर दो तरीके से नष्ट होने लगती हैं। पहली स्थिति में हड्डी खुद-ब-खुद क्रैक होने लगती है और दूसरी अवस्था में वह गल कर नष्ट हो जाती है। इस दौरान रीढ़, नितंब, पसली और कलाई की हड्डियों में फ्रेक्चर आम होता है, लेकिन बाकी हड्डियों में भी फ्रेक्चर की आशंका बढ़ जाती है।

         यह बीमारी क्यों होती है
इस बीमारी की आशंका उम्र बढ़ने के साथ-साथ ज्यादा होती जाती है। इसका कारण है कि हमारे शरीर में हड्डियां 26 से 30 साल के बीच सबसे ज्यादा मजबूत पाई जाती हैं, क्योंकि इस दौरान हड्डियों का घनत्व अपने शिखर पर होता है। इस दौरान हड्डियां अपनी कमी की भरपाई खुद कर लेती हैं। जरूरत के हिसाब से नए बोन टिश्यूज बन जाते हैं। 35 साल की उम्र के आस—पास हड्डियां क्षीण होने लगती हैं और धीमे—धीमे इनका घनत्व कम होता जाता है। ऐसे समय में अगर हड्डियों का ध्यान न रखा जाए तो ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है।

         प्राकृतिक रूप से कैल्शियम लेने के लिए
अगर हम प्रतिदिन पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम नहीं लेंगे तो शरीर हड्डियों से कैल्शियम लेना शुरू कर देगा। कुछ समय तक अगर ऐसा ही चलता रहा तो कैल्शियम की कमी से हड्डियां कमजोर हो जाएंगी। इसलिए जरूरी है कि शरीर को प्राकृतिक रूप से हर दिन 1000 से 1200 मिलीग्राम तक कैल्शियम मिलता रहे। अगर ऐसा नहीं हो पाता तो फिर कैल्शियम की दवा की जरूरत पड़ सकती है। प्राकृतिक रूप से कैल्शियम लेने के लिए दही, दूध, सोया मिल्क, टोफू, सोयाबीन, फ्रोजन दही, कम फैट वाली आइसक्रीम, सफेद बीन, केला, कोलार्ड ग्रीन, ब्रोकली, बादाम, बादाम बटर आदि को अपने भोजन में शामिल करें। ये कैल्शियम के अच्छे स्त्रोत है।विटामिन डी लिए बिना कैल्शियम का सेवन बेकार हो जाएगा, क्योंकि विटामिन डी आंत से कैल्शियम सोखने में मदद करता है। हमारा शरीर सूरज की रोशनी से विटामिन डी बनाने में सक्षम होता है। चूंकि सूरज की रोशनी के ज्यादा संपर्क में आने से कैंसर का खतरा रहता है, इसलिए भोजन के जरिए विटामिन डी लेना बेहतर रहेगा। इसके लिए आप मछली, फोर्टिफाइड मिल्क, सोया मिल्क, संतरे का रस और अंडे की जर्दी का सेवन कर सकते हैं।

         व्यायाम भी है जरूरी
व्यायामों के जरिये भी हड्डियों को मजबूत कर ऑस्टियोपोरोसिस से दूर रहा जा सकता है। इसके लिए जॉगिंग, टेनिस, योग, पावर वॉकिंग, स्विमिंग, एथलेटिक्स, फुटबॉल और बैडमिंटन की मदद ले सकते हैं।

         शराब का सेवन न करें
यह न सिर्फ कैल्शियम और विटामिन डी के अवशोषण को प्रभावित करता है, बल्कि पैराथायराइड हार्मोन को भी बढ़ा देता है। यह हार्मोन हड्डी में मौजूद कैल्शियम को ब्रेकडाउन करता है और हड्डी पर कैल्शियम के जमाव को बढ़ाने वाला हार्मोन कार्टिसोल को घटा देता है। इसके अलावा यह हड्डी बनाने वाली कोशिका ऑस्टियोब्लास्ट को भी नष्ट करता है।

          सावधानियां भी हैं जरूरी
 नमक के कारण मूत्र और पसीने में कैल्शियम का उत्सर्जन बढ़ जाता है, जिससे यदि आपमें कैल्शियम की कमी है तो हड्डियां गलनी शुरू हो जाती हैं। अनुसंधान बताते हैं कि उच्च रक्तचाप वाले लोगों के मूत्र में कैल्शियम ज्यादा उत्सर्जित होता है।  कुछ दवाओं के सेवन से ऑस्टियोपोरोसिस होने की आशंका बढ़ जाती है।

         नियमित परीक्षण कराएं
इस बीमारी से बचने के लिए 40 की उम्र पार करने के बाद बोन मिनरल डेंसिटी का परीक्षण कराते रहना चाहिए।
अब ओस्टियोपोरोसिस की समस्या बच्चों, किशोरों और युवाओं में भी देखी जा रही है। उनमें इस समस्या की वजह संतुलित आहार की कमी, जंक फूड का सेवन, इंटरनेट पर व्यस्त रहना और शारीरिक गतिविधियों पर ध्यान न देना और धूप से दूर एसी में बैठे रहना प्रमुख हैं। कामकाजी युवाओं को ऑफिस में दिनभर एसी में रहना होता है, जिस कारण उन्हें धूप नहीं मिल पाती।          


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